आखिर इस स्वतंत्र भारत में गुरुकुलों की स्थापना क्यों नहीं हुई? बाबाओं ने आश्रम बना दिये, मठ बना दिये, चंदे के बलपर बड़े बड़े प्रकल्प चलने लगे, लेकिन गुरुकुलों से दूरी क्यों बनी हुई है? इंग्लैंड में पहला स्कूल 1811 में खुला उस समय भारत में 7,32,000 गुरुकुल थे, आइए जानते हैं हमारे गुरुकुल कैसे बन्द हुए। हमारे सनातन संस्कृति परम्परा के गुरुकुल में क्या क्या पढाई होती थी ? 01 अग्नि विद्या (Metallurgy) 02 वायु विद्या (Flight) 03 जल विद्या (Navigation) 04 अंतरिक्ष विद्या (Space Science) 05 पृथ्वी विद्या (Environment) 06 सूर्य विद्या (Solar Study) 07 चन्द्र व लोक विद्या (Lunar Study) 08 मेघ विद्या (Weather Forecast) 09 पदार्थ विद्युत विद्या (Battery) 10 सौर ऊर्जा विद्या (Solar Energy) 11 दिन रात्रि विद्या 12 सृष्टि विद्या (Space Research) 13 खगोल विद्या (Astronomy) 14 भूगोल विद्या (Geography) 15 काल विद्या (Time) 16 भूगर्भ विद्या (Geology Mining) 17 रत्न व धातु विद्या (Gems & Metals) 18 आकर्षण विद्या (Gravity) 19 प्रकाश विद्या (Solar Energy) 20 तार विद्या (Communication)
आज हम जानेंगे कि होली क्यों मनाया जाता है? और वैदिक होली किसे कहते है, वैदिक होली कैसे मनाई जाती है? होलिका scientific reason क्या है जानिए हिंदी में।
संस्कृत शिक्षा के अभाव में हमें वास्तविक तथ्यों का ज्ञान नहीं हो पाता । आइये जानें होली का यथार्थ
(Real meaning of HOLI)
अग्नि में भूने हुए अधपके फली युक्त फसल को होलक (होला) कहते हैं । अर्थात् जिन पर छिलका होता है जैसे हरे चने आदि ।
भारत देश में ऋतु के अनुसार, _दो मुख्य प्रकार की फसलें (Crops) होती हैं ।_
भारतीय फसलें तथा उनका वर्गीकरण -
१. खरीफ फसलें : धान, बाजरा, मक्का, कपास, मूँगफली, शकरकन्द, उर्द, मूँग, मोठ लोबिया (चँवला), ज्वार, तिल, ग्वार, जूट, सनई, अरहर, ढैंचा, गन्ना, सोयाबीन, भिण्डी
२. रवि फसलें : गेहूँ, जौं, चना, सरसों, मटर, बरसीम, रिजका, मसूर, आलू, लाही, जंई ।
रवि की फसल में आने वाले सभी प्रकार के अन्न को होला कहते है ।
"वासन्तीय नवसस्येष्टि होलकोत्सव" वसन्त ऋतु में आई हुई रवि की नवागत फसल को होम/हवन में डालकर फिर श्रद्धापूर्वक ग्रहण करने का नाम होली है ।
यह पर्व प्राकृतिक है, ऐतिहासिक नहीं है । और बाद में होला से ही होली बना है । प्रहलाद-होलिका वाला दृष्टान्त आलंकारिक है । इस दृष्टांत को होली पर्व से ऐतिहासिक रूप से जोड़ना अनुपयुक्त (inappropriate) है ।
“कोई भी व्यक्ति कितना भी पुण्यात्मा हो या पापी हो, अग्नि में बैठेगा तो वह जल जाएगा क्योंकि अग्नि का काम जलाना है, वह किसी का तप, निष्ठा धर्म नहीं पूछती । और यदि होलिका प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठी थी तो दोनों जलने चाहिएँ परंतु ऐसा नहीं हुआ । इस दृष्टांत को होली के साथ ऐतिहासिक रूप से जोड़ने से कोई लाभ नहीं है ।
वेद में कहा है - "केवलाघो भवति केवलादी" अर्थात् अकेला खानेवाला पापी होता है । इसलिए प्रसन्नतापूर्वक बाँट कर खाना चाहिए ।
होली के दूसरे दिन जो रंग खेलने की प्रथा है वह भी एक प्राकृतिक उत्सव है । आपस में मेल -मिलाप को बढ़ाना, एक दूसरे का सम्मान करना, एक दूसरे के साथ प्रेम करना, किसी के प्रति मन दुःखी हो या लड़ाईं हो गया हो तो उसको भूलकर एक दूसरे को प्रकृति के उपहार स्वरुप प्रदत्त वसंत ऋतु में आए हुए नए फूलों का चूर्ण करके उसका रंग बनाकर सभ्यता से प्रसन्नता पूर्वक बिना किसी को परेशान किए लगाना और सम्मान करना चाहिए । यह कार्य भी प्रेम पूर्वक करना चाहिए, द्वेषपूर्वक नहीं । जिससे कोई व्यक्ति दुखी ना हो, आपके रङ्ग लगाने से परेशान ना हो, इसका विचार रखना चाहिए ।
वसंत ऋतु में आयुर्वेद के अनुसार वात, पित्त, कफ आदि दोषों को सम रखने के लिए होलक (नए अन्न) को भून कर खाना चाहिए और पलाश आदि फूलों को रात्रि में पानी में डूबा कर उससे स्नान करना चाहिए ।
केमिकल वाले रंगों का प्रयोग सर्वथा नहीं करना चाहिये, जो कि पर्यावरण को दूषित करता है और skin disease उत्पन्न करता है । अतः प्राकृतिक और सुरक्षित रंगों का उपयोग करना चाहिये । वेद-शास्त्र में रंग या कीचड़ से होली खेलने का विधान नहीं है
Thus, this festival does not belong to Hindu only, but Holi is a festival of every Human being.
होली ऐतिहासिक या प्राकृतिक पर्व ?
Why do we celebrate Holi ? Is this festival related to Historic event ?
संस्कृत शिक्षा के अभाव में हमें वास्तविक तथ्यों का ज्ञान नहीं हो पाता । आइये जानें होली का यथार्थ
(Real meaning of HOLI)
अग्नि में भूने हुए अधपके फली युक्त फसल को होलक (होला) कहते हैं । अर्थात् जिन पर छिलका होता है जैसे हरे चने आदि ।
भारत देश में ऋतु के अनुसार, _दो मुख्य प्रकार की फसलें (Crops) होती हैं ।_
भारतीय फसलें तथा उनका वर्गीकरण -
१. खरीफ फसलें : धान, बाजरा, मक्का, कपास, मूँगफली, शकरकन्द, उर्द, मूँग, मोठ लोबिया (चँवला), ज्वार, तिल, ग्वार, जूट, सनई, अरहर, ढैंचा, गन्ना, सोयाबीन, भिण्डी
२. रवि फसलें : गेहूँ, जौं, चना, सरसों, मटर, बरसीम, रिजका, मसूर, आलू, लाही, जंई ।
रवि की फसल में आने वाले सभी प्रकार के अन्न को होला कहते है ।
"वासन्तीय नवसस्येष्टि होलकोत्सव" वसन्त ऋतु में आई हुई रवि की नवागत फसल को होम/हवन में डालकर फिर श्रद्धापूर्वक ग्रहण करने का नाम होली है ।
यह पर्व प्राकृतिक है, ऐतिहासिक नहीं है । और बाद में होला से ही होली बना है । प्रहलाद-होलिका वाला दृष्टान्त आलंकारिक है । इस दृष्टांत को होली पर्व से ऐतिहासिक रूप से जोड़ना अनुपयुक्त (inappropriate) है ।
“कोई भी व्यक्ति कितना भी पुण्यात्मा हो या पापी हो, अग्नि में बैठेगा तो वह जल जाएगा क्योंकि अग्नि का काम जलाना है, वह किसी का तप, निष्ठा धर्म नहीं पूछती । और यदि होलिका प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठी थी तो दोनों जलने चाहिएँ परंतु ऐसा नहीं हुआ । इस दृष्टांत को होली के साथ ऐतिहासिक रूप से जोड़ने से कोई लाभ नहीं है ।
होली एक प्राकृतिक पर्व है, भौगोलिक पर्व है ।
होली मनाने का सही विधान, वसन्त ऋतु के नये अन्न को यज्ञ (हवन) में आहुति देकर ग्रहण करना है । क्योंकि भारतीय संस्कृति दान देकर, बाँट कर खाने में विश्वास करती है ।वेद में कहा है - "केवलाघो भवति केवलादी" अर्थात् अकेला खानेवाला पापी होता है । इसलिए प्रसन्नतापूर्वक बाँट कर खाना चाहिए ।
होली के दूसरे दिन जो रंग खेलने की प्रथा है वह भी एक प्राकृतिक उत्सव है । आपस में मेल -मिलाप को बढ़ाना, एक दूसरे का सम्मान करना, एक दूसरे के साथ प्रेम करना, किसी के प्रति मन दुःखी हो या लड़ाईं हो गया हो तो उसको भूलकर एक दूसरे को प्रकृति के उपहार स्वरुप प्रदत्त वसंत ऋतु में आए हुए नए फूलों का चूर्ण करके उसका रंग बनाकर सभ्यता से प्रसन्नता पूर्वक बिना किसी को परेशान किए लगाना और सम्मान करना चाहिए । यह कार्य भी प्रेम पूर्वक करना चाहिए, द्वेषपूर्वक नहीं । जिससे कोई व्यक्ति दुखी ना हो, आपके रङ्ग लगाने से परेशान ना हो, इसका विचार रखना चाहिए ।
वसंत ऋतु में आयुर्वेद के अनुसार वात, पित्त, कफ आदि दोषों को सम रखने के लिए होलक (नए अन्न) को भून कर खाना चाहिए और पलाश आदि फूलों को रात्रि में पानी में डूबा कर उससे स्नान करना चाहिए ।
केमिकल वाले रंगों का प्रयोग सर्वथा नहीं करना चाहिये, जो कि पर्यावरण को दूषित करता है और skin disease उत्पन्न करता है । अतः प्राकृतिक और सुरक्षित रंगों का उपयोग करना चाहिये । वेद-शास्त्र में रंग या कीचड़ से होली खेलने का विधान नहीं है
Thus, this festival does not belong to Hindu only, but Holi is a festival of every Human being.
Good
ReplyDelete