Skip to main content

Posts

Showing posts from August, 2020

हमारे सनातन संस्कृति परम्परा के गुरुकुल में क्या क्या पढाई होती थी?

आखिर इस स्वतंत्र भारत में गुरुकुलों की स्थापना क्यों नहीं हुई? बाबाओं ने आश्रम बना दिये, मठ बना दिये, चंदे के बलपर बड़े बड़े प्रकल्प चलने लगे, लेकिन गुरुकुलों से दूरी क्यों बनी हुई है? इंग्लैंड में पहला स्कूल 1811 में खुला उस समय भारत में 7,32,000 गुरुकुल थे, आइए जानते हैं हमारे गुरुकुल कैसे बन्द हुए। हमारे सनातन संस्कृति परम्परा के गुरुकुल में क्या क्या पढाई होती थी ? 01 अग्नि विद्या (Metallurgy)  02 वायु विद्या (Flight)  03 जल विद्या (Navigation)  04 अंतरिक्ष विद्या (Space Science)  05 पृथ्वी विद्या (Environment)  06 सूर्य विद्या (Solar Study)  07 चन्द्र व लोक विद्या (Lunar Study)  08 मेघ विद्या (Weather Forecast)  09 पदार्थ विद्युत विद्या (Battery)  10 सौर ऊर्जा विद्या (Solar Energy)  11 दिन रात्रि विद्या  12 सृष्टि विद्या (Space Research)  13 खगोल विद्या (Astronomy)  14 भूगोल विद्या (Geography)  15 काल विद्या (Time)  16 भूगर्भ विद्या (Geology Mining)  17 रत्न व धातु विद्या (Gems & Metals)  18 आकर्षण विद्या (Gravity)  19 प्रकाश विद्या (Solar Energy)  20 तार विद्या (Communication) 

સાતમ-આઠમે ધર્મના નામે જુગારનો અધર્મ શા માટે?

શું આપણે આપણા મુખ્ય તહેવારોમાં આપણી ઋષિ-મહર્ષિઓ, મહાપુરુષો ની શિક્ષાઓ અપનાવી રહ્યા છીએ કે એનો ત્યાજ્ય કરી રહ્યા છીએ? આપણાં તહેવારો માં આપણે મદ્યપાન, દ્યુત(જુગાર) વગેરે ને ફેશન બનાવી બેઠા છીએ આ કેટલું યોગ્ય છે શું આ આપણા પૂર્વજો ની શિક્ષાઓ છે?? અને ઉપરથી પોતાનો બચાવ કરવા જુગારીઓ એવી મિથ્યા વાત કરે છે કે મહાભારતમાં ભગવાન પણ રમતાં..! મુર્ખાઓ..! આવી તથ્ય વીહોણી વાતો કરી ભગવાન નું અપમાન શા માટે કરો છો? શ્રી કૃષ્ણ કહે છે કે, "नैतत् कृच्छ्रमनुप्राप्तो भवान् स्याद् वसुधाधिप । यद्यहं द्वारकायां स्यां राजन् सन्निहित: पुरा ।। आगच्छेयमहं द्यूतमनाहूतोऽपि कौरवे: । वारयेयमहं द्यूतं बहून् दोषान् प्रदर्शयन् ।।" (મહાભારત વનપર્વ, અધ્યાય ૧૩, શ્લોક ૧,૨) અર્થાત હે રાજન (યુધિષ્ઠિર) ! જો હું દ્વારકા માં અથવા તેના નજીક હોત તો તમે આ ભારી સંકટ માં ન પડત. હું કૌરવો ના વગર બોલાવે પણ એ દ્યુતસભા માં આવી જાત અને તે જુગારના અનેકો દોષ બતાવી એને અવશ્ય રોકત... ભગવાન શ્રી કૃષ્ણએ આગળ પણ અનેકો આના વિષયક વાત કરી છે...(જે આમાં જોડેલા ચિત્ર માં વાંચવું) જ્યારે પુર્ણ પુરુષોત્તમ યોગીરાજ શ્રી કૃષ્ણ સ્વંય જ જુગાર ના વિરો

क्या आर्य बहार से आये थे? शङ्का-समाधान

प्रश्न/शङ्का : "इस भूमि को उत्तम जानकर आर्य बहार से आकर यहां बस गये, अर्थात् वे भी यहां बसे हैं ।" वे भी यहां बसे हैं इसमें कोई भिन्न मत नहीं किन्तु वे किसी भिन्न देश से आये उस में दोष है । भारतीय वाङ्गमय का मत है कि मनुष्यों की उत्पत्ति त्रिविष्टिप क्षेत्र में हुई अर्थात् आर्य(गुण-कर्म-स्वभाव श्रेष्ठ मनुष्य) भी वहां उत्पन्न हुएं । क्या आर्य बाहर से आये थे? आर्यों की भूमि कौनसी? आर्य किसे कहते हैं? अब यह प्रश्न होता है कि यह क्षेत्र कहां है? इस क्षेत्र को दिव,नाक, स्वर्गलोक, देवलोक, त्रिदिव कहा जाता है । वहां सब मनुष्य बसते थे बहुत काल पश्चात् सभी का प्रव्रजन आरम्भ हुआ और वहां से मनुष्य हिमालय की चारों दिशाओं में गये, उस काल से कुछ वर्ष पूर्व हिमालय के चारों और समुद्र था, अर्थात् अन्य कोई मनुष्य किसी भाग में नहीं रहता था । दूसरी बात कि आर्य नामक कोई वंश वा नस्ल न तो थी और न ही है । आर्य सुसंस्कृत "समाज",  वर्ग वा समूह को कहते थे । योरपीयनों ने ही गोरे,लंबे-चौड़े,नील अक्षीय,अश्वारोही आर्य नामक नस्ल की बात घढ़ी है ,भारत के किसी भी आर्ष ग्रन्थ में आर्य नस्ल वा व