आखिर इस स्वतंत्र भारत में गुरुकुलों की स्थापना क्यों नहीं हुई? बाबाओं ने आश्रम बना दिये, मठ बना दिये, चंदे के बलपर बड़े बड़े प्रकल्प चलने लगे, लेकिन गुरुकुलों से दूरी क्यों बनी हुई है? इंग्लैंड में पहला स्कूल 1811 में खुला उस समय भारत में 7,32,000 गुरुकुल थे, आइए जानते हैं हमारे गुरुकुल कैसे बन्द हुए। हमारे सनातन संस्कृति परम्परा के गुरुकुल में क्या क्या पढाई होती थी ? 01 अग्नि विद्या (Metallurgy) 02 वायु विद्या (Flight) 03 जल विद्या (Navigation) 04 अंतरिक्ष विद्या (Space Science) 05 पृथ्वी विद्या (Environment) 06 सूर्य विद्या (Solar Study) 07 चन्द्र व लोक विद्या (Lunar Study) 08 मेघ विद्या (Weather Forecast) 09 पदार्थ विद्युत विद्या (Battery) 10 सौर ऊर्जा विद्या (Solar Energy) 11 दिन रात्रि विद्या 12 सृष्टि विद्या (Space Research) 13 खगोल विद्या (Astronomy) 14 भूगोल विद्या (Geography) 15 काल विद्या (Time) 16 भूगर्भ विद्या (Geology Mining) 17 रत्न व धातु विद्या (Gems & Metals) 18 आकर्...
मनुष्य कितना भोला है! आती मृत्यु से आँख मींच लेना चाहता है! आज का काम कल के लिए टालता है! कल किसने देखा है? कल क्या, अगले ही क्षण का मनुष्य को कुछ पता नहीं है। किसी सन्त ने ठीक कहा है―
"कल नाम काल का है और आज नाम 'अज' (मोक्ष) का है।"
कल के लिए कुछ न छोड़ो! जो छोड़ा तो समझो वह सदा के लिए छूट गया। शतपथब्राह्मण में कहा है―
न श्वः श्व इत्युपासीत् को हि मनुष्यस्य श्वो वेद।
कल-कल की बात मत करो ! मनुष्य के कल (आगामी) को कौन जानता है?
अतः कुशलता इसी में है―
"कल नाम काल का है और आज नाम 'अज' (मोक्ष) का है।"
कल के लिए कुछ न छोड़ो! जो छोड़ा तो समझो वह सदा के लिए छूट गया। शतपथब्राह्मण में कहा है―
न श्वः श्व इत्युपासीत् को हि मनुष्यस्य श्वो वेद।
कल-कल की बात मत करो ! मनुष्य के कल (आगामी) को कौन जानता है?
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Vedic Motivational Sloka |
कल के लिए कुछ न छोड़ो - Vedic Motivation Quotes in Hindi
बेस्ट वैदिक मोटिवेशनल कोट्स और श्लोक समय पर। समय का कितना महत्व है ये हमे हमारे वेद, उपनिषद, गीता महाभारत आदि ग्रंथों से पता चलता है।
महाभारत (शान्तिपर्व) में महर्षि व्यास का भी यही अनुभव है―
न कश्चिदपि जानाति किं कस्य श्वो भविष्यति।भावार्थ―कोई नहीं जानता कल क्या होने वाला है, अतः बुद्धिमान् व्यक्ति को कल का कार्य आज ही निपटा देना चाहिए, शाम के लिए कुछ भी न छोड़े, क्योंकि जब मौत आएगी तो वह प्रतिक्षा नहीं करेगी कि इसने कुछ किया है अथवा नहीं।
अतः श्वः.करणीयानि कुर्यादद्यैव बुद्धिमान्।।
श्वकार्यमद्य कुर्वीत् पूर्वाह्ने चापराहिनकम्।
न हि प्रतीक्षते मृत्युः कृतमस्य न वा कृतम्।।
महामुनि व्यास कहते हैं―
आयुषः क्षण एकोऽपि न लभ्यः स्वर्णकोटिभिः।स वृथा नीयते येन तस्मै नृपशवे नमः।।भावार्थ―उस 'नरपशु' को मेरा नमस्कार है जो आयु के उस एक-एक क्षण को व्यर्थ खो रहा है जो क्षण करोड़ों स्वर्णमुद्राओं के द्वारा भी पुनः प्राप्त नहीं किया जा सकता।
अतः कुशलता इसी में है―
यावत् स्वस्थो ह्ययं देहो, यावत् मृत्युश्च दूरतः।तावदात्महितं कुर्यात्, प्राणान्ते किं करिष्यति।।अनित्यानि शरीराणि, विभवो नैव शाश्वतः।नित्यं सन्निहितो मृत्युः कर्त्तव्यो धर्मसंग्रहः।।भावार्थ― जब तक यह शरीर स्वस्थ बना हुआ है, जब तक बुढ़ापा नहीं आया है, तभी तक आत्म-कल्याण के लिए कुछ कार्य कर डालो। प्राणान्त होने पर क्या कर सकोगे? शरीर नश्वर है, वैभव अस्थायी है, मृत्यु सदा निकट है, अतः धर्मसंग्रह में शीघ्र क्यों नहीं लगते?
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