आखिर इस स्वतंत्र भारत में गुरुकुलों की स्थापना क्यों नहीं हुई? बाबाओं ने आश्रम बना दिये, मठ बना दिये, चंदे के बलपर बड़े बड़े प्रकल्प चलने लगे, लेकिन गुरुकुलों से दूरी क्यों बनी हुई है? इंग्लैंड में पहला स्कूल 1811 में खुला उस समय भारत में 7,32,000 गुरुकुल थे, आइए जानते हैं हमारे गुरुकुल कैसे बन्द हुए। हमारे सनातन संस्कृति परम्परा के गुरुकुल में क्या क्या पढाई होती थी ? 01 अग्नि विद्या (Metallurgy) 02 वायु विद्या (Flight) 03 जल विद्या (Navigation) 04 अंतरिक्ष विद्या (Space Science) 05 पृथ्वी विद्या (Environment) 06 सूर्य विद्या (Solar Study) 07 चन्द्र व लोक विद्या (Lunar Study) 08 मेघ विद्या (Weather Forecast) 09 पदार्थ विद्युत विद्या (Battery) 10 सौर ऊर्जा विद्या (Solar Energy) 11 दिन रात्रि विद्या 12 सृष्टि विद्या (Space Research) 13 खगोल विद्या (Astronomy) 14 भूगोल विद्या (Geography) 15 काल विद्या (Time) 16 भूगर्भ विद्या (Geology Mining) 17 रत्न व धातु विद्या (Gems & Metals) 18 आकर्षण विद्या (Gravity) 19 प्रकाश विद्या (Solar Energy) 20 तार विद्या (Communication)
🔥ओ३म्🔥
भृगुवल्ली,दशमोऽनुवाक:, पञ्चम श्लोक ।
💥स य एवंवित् । अस्माल्लोकात्प्रेत्य । एतमन्नमयमात्मानमुपसङ्क्रम्य ।
एतं प्राणमयमात्मानमुपसङ्क्रम्य ।
एतं मनोमयमात्मानमुपसङ्क्रम्य ।
एतं विज्ञानमयमात्मानमुपसङ्क्रम्य । एतमानन्दमयमात्मानमुपसङ्क्रम्य ।
इमांल्लोकान्कामान्नी कामरूप्यनुसञ्चरन् ।
एतत्साम गायन्नास्ते । हा३वु हा३वु हा३वु ॥
📝अर्थ -
(सः, यः , च, अयम्, पुरूषे, यः, च, असौ आदित्ये)
वह जो इस पुरूष मनुष्य शरीर में है और जो उस सूर्य में है ।
(सः, एकः) वह एक ही है (सः, यः, एवम्, वित् ) वह जो ऐसा जानता है (अस्मात् लोकात्, प्रेत्य) इस लोक से मरकर (एतम्, अन्नमयम्, आत्मानम्, उपसङ्क्रम्य) इस अन्नमय आत्मा कोश से आगे बढ़कर (एतम्, प्राणामयम्, आत्मानम्, उपसङ्क्रम्य) इस प्राणमयकोश से आगे बढ़कर (एतम्, मनोमयम्, आत्मानम्, उपसङ्क्रम्य) इस मनोमयकोश से आगे बढ़कर (एतम्, विज्ञानमयम्, आत्मानम् उपसङ्क्रम्य) इस विज्ञानमयकोश से आगे बढ़कर (एतम्, आनन्दमयम्, आत्मानम्, उपसङ्क्रम्य) इस आनन्दमयकोश से आगे बढ़कर (इमान्, लोकान्, कामान्, नीकामरूपी, अनुसञ्चरन् ) कामना के योग्य इन सब लोकों को , निष्काम होकर विचरता हुआ । (एतत्, साम, गायन्, आस्ते) यह सामगान करता हुआ रहता है । (हा३वु, हा३वु, हा३वु) हा३वु के अर्थ हैं अहो, तेरी रचना अहो तेरी महिमा अहो तेरी अलौकिकता ।
💥शम्💥
🔥
🚩
सं: जाम आर्यवीर
📕"तैत्तिरियोपनिषद्"⛳
भृगुवल्ली,दशमोऽनुवाक:, पञ्चम श्लोक ।
💥स य एवंवित् । अस्माल्लोकात्प्रेत्य । एतमन्नमयमात्मानमुपसङ्क्रम्य ।
एतं प्राणमयमात्मानमुपसङ्क्रम्य ।
एतं मनोमयमात्मानमुपसङ्क्रम्य ।
एतं विज्ञानमयमात्मानमुपसङ्क्रम्य । एतमानन्दमयमात्मानमुपसङ्क्रम्य ।
इमांल्लोकान्कामान्नी कामरूप्यनुसञ्चरन् ।
एतत्साम गायन्नास्ते । हा३वु हा३वु हा३वु ॥
📝अर्थ -
(सः, यः , च, अयम्, पुरूषे, यः, च, असौ आदित्ये)
वह जो इस पुरूष मनुष्य शरीर में है और जो उस सूर्य में है ।
(सः, एकः) वह एक ही है (सः, यः, एवम्, वित् ) वह जो ऐसा जानता है (अस्मात् लोकात्, प्रेत्य) इस लोक से मरकर (एतम्, अन्नमयम्, आत्मानम्, उपसङ्क्रम्य) इस अन्नमय आत्मा कोश से आगे बढ़कर (एतम्, प्राणामयम्, आत्मानम्, उपसङ्क्रम्य) इस प्राणमयकोश से आगे बढ़कर (एतम्, मनोमयम्, आत्मानम्, उपसङ्क्रम्य) इस मनोमयकोश से आगे बढ़कर (एतम्, विज्ञानमयम्, आत्मानम् उपसङ्क्रम्य) इस विज्ञानमयकोश से आगे बढ़कर (एतम्, आनन्दमयम्, आत्मानम्, उपसङ्क्रम्य) इस आनन्दमयकोश से आगे बढ़कर (इमान्, लोकान्, कामान्, नीकामरूपी, अनुसञ्चरन् ) कामना के योग्य इन सब लोकों को , निष्काम होकर विचरता हुआ । (एतत्, साम, गायन्, आस्ते) यह सामगान करता हुआ रहता है । (हा३वु, हा३वु, हा३वु) हा३वु के अर्थ हैं अहो, तेरी रचना अहो तेरी महिमा अहो तेरी अलौकिकता ।
💥शम्💥
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सं: जाम आर्यवीर
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